ये खिड़की मेरी, वो दरवाज़ा तेरा...
ये नुक्कड़, वो गली, अब इंसानों का डेरा |
बदन के चंद हिस्से मेरे, जिन्हें फ़लक के सितारे नसीब थे कभी...
वो हिस्से आज कल कुछ कराहते हैं...
कहते हैं वो अर्श यावर(यार) था उनका |
मेरे तो होंठ दबे हैं कुछ बिल्डिंगों के वज़न से वरना बोलता --
वो एक हमसफ़र भी तूने ऐ ज़ालिम -- छीना मेरा |
2 comments:
Nice thought Dear,
This modern day construction has created a sense of buzzing in the environment..its not even a single second where u can feel ultimate paece....and a divine connection to the ONE above...
Dear Vini
Thank you for your kind words. Your appreciation bolsters my endeavor. So, keep writing, keep commenting.
Peace !
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